बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
अथवा
जैन दर्शन के मुक्तजीव की अवधारणा की व्याख्या कीजिये।
अथवा
जैन दर्शन के पर्याय विचार की व्याख्या कीजिए।
अथवा
जैन दर्शन के विचार की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
जीव तत्व जीव स्वरूप
जैन की परिभाषा के अनुसार चेतन द्रव्य को जीव या आत्मा कहते हैं। संसार की दशा में आत्मा 'जीव' कहलाता है उसमें प्राण और शारीरिक, मानसिक तथा इन्द्रियजन्य शक्ति है। शुद्ध अवस्था में जीव के विरुद्ध ज्ञान और दर्शन अतः निर्विकल्प और सविकल्प का ज्ञान रहता है। परन्तु कार्य के प्रभाव से जीव औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदायिक तथा परिमाणिक इन पाँच 'भावप्राणों' से निहत रहता है। द्रव्य रूप में परिणित होकर ही 'भावदशापन्न प्राण पुल कहलाता है। पुल निहित जीव संसारी कहलाता है। जैन दर्शन परिणामवादी है। अतः भाव द्रव्य में और द्रव्य में भाव बदलते रहते हैं।
जीव के गुण
जीव स्वयं प्रकाश है और अन्य वस्तुओं को भी प्रकाशित करता है। वह नित्य है। वह सम्पूर्ण शरीर में विद्यमान रहता है। शुद्ध दृष्टि से जीव में 'ज्ञान' तथा 'दर्शन' है। जीव अमूर्त, कर्ता, स्थूल शरीर के समान लम्बा-चौड़ा, कर्मफलों का भोक्ता सिद्ध तथा ऊर्ध्वगामी है। अनादि 'अविद्या' के कारण इसमें 'कर्म' प्रवेश करता है और वह बन्धन में बँध जाता है। बुद्ध जीव चेतन और 'नित्य परिणामी' है। संकोच और विकास के गुणों के कारण यह जिस शरीर में प्रवेश करता है उसी का रूप धारण कर लेता है। जीव का विस्तार जड़ के विस्तार से अलग है। वह शरीर को घेरता नहीं, परन्तु उसका प्रत्येक भाग में अहसास होता है। एक जड़ द्रव्य में दूसरा जड़ द्रव्य प्रविष्ट नहीं हो सकता। परन्तु जड़ में आत्मा और जीव में जीव प्रविष्ट हो सकता है। जीव में रूप में नहीं है अर्थात् उसे आँखों से नहीं देखा जा सकता। उसका अस्तित्व आत्मानुभूति से सिद्ध होता है। मुक्त अवस्था में उसे सम्यक ज्ञान होता है। उसका अस्तित्व आत्मानुभूति से सिद्ध होता है। मुक्त अवस्था में उसे सम्यक ज्ञान होता है। जीव में प्रदेश' होते हैं जो पर्याय भी कहलाते हैं। अतः जीव अस्तिकाय ( प्रदेशों अथवा शरीर से युक्त) कहा जाता है। जीव प्रतिक्षण परिणामी है। इसमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य हर समय रहते हैं। यह 'काल' के प्रभाव से होता है। जीव में स्वाभाविक रूप से 'अनन्तज्ञा', 'अनन्तदर्शन' तथा 'अनन्तसामार्थ्य' विद्यमान रहता है। आवरणीय कर्मों के प्रभाव से इनकी अभिव्यक्ति नहीं होती हैं। जीव के विशेष गुण हैं, चेतना या अनुभूति तथा उपयोग या चेतन का फल। उपयोग के भी दो भेद हैं यथा 'ज्ञानोपयोग' तथा 'दर्शनोपयोग'। प्रथम को सविकल्पक तथा दूसरे को निर्विकल्पक ज्ञान रहते हैं। सविकल्पक ज्ञान आठ प्रकार के हैं मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवल और तीन विपर्यय तथा कुमति, कुश्रुत तथा विभंगावधि। केवल ज्ञान शुद्ध और क्षायिक है और कर्मों का नाश होने के बाद अभिव्यक्त होता है।
जीव के पर्याय
जीव के चार 'पर्याय' अथवा 'परिणाम' है। यह हैं दिव्य, मनुष्य, नारकीय तथा तीर्यक। पर्याय भी दो प्रकार का होता है अथात् द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय | द्रव्यपर्याय अलग-अलग द्रव्यों में एक बुद्धि का कारण है। परिणाम के कारण द्रव्यों के गुणों में जो बदलाव हो उसे गुण पर्याय कहते हैं जैसे आम, आम रहते हुए भी हरे से पीला हो जाता है। द्रव्य पर्याय के भी भेद हैं समानजातीय द्रव्यपर्याय और असमानजातीय द्रव्यपर्याय। पहला जड़ द्रव्यों के संगठन से पैदा होता है और दूसरा जड़ और चेतन दोनों के संगठन से पैदा होता है। प्रथम का उदाहरण 'स्कन्ध' है और दूसरे का मानुष शरीर। जैन 'सदभाववादी' हैं। शरीर का नाश होता है परन्तु दिव्य, मानुष अथवा नारकीय कोई भी रूप धारण करने पर भी जीवत्व रूप, 'भाव' का नाश कभी नहीं होता है। द्रव्य नित्य है, परन्तु पर्याय अनित्य है। जैनों के 'अनेकान्तवाद' के सिद्धान्त में यही बात समझाई गई है।
जीव के भेद
साधारण रूप से जीव के दो भेद पाये जाते हैं यथा-बुद्ध और मुक्त बुद्ध अथवा संसारी जीवों में पुनः दो भेद किये जाते हैं तथा त्रस (जंगम) और स्थावर जीवों में एक ही इन्द्रिय 'त्वक् इन्द्रिय होती है। क्षिति, जल, तेज, वायु और वनस्पति जगत् ये सभी 'स्थावर' जीव हैं। 'त्रस' वे जीव हैं जिनमें एक से अधिक इन्द्रियाँ हैं। इस प्रकार मनुष्य, पक्षी, जानवर देवता और नारकीय जन यह सभी 'त्रस' जीव हैं। इनमें पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं। विभिन्न प्रकार के शरीरों के अनुसार इनके अनेक नाम होते हैं। पृथ्वी का स्वरूप धारण करने वाले जैसे पत्थर इत्यादि को 'पृथिवीकाय' और जल स्वरूप धारण करने वाले जैसे सेमार इत्यादि को 'अप्काय कहते हैं। इसी प्रकार 'वायुकाय' तथा 'तेजः काय' इत्यादि भी होते हैं।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
- प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
- प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
- प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
- प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
- प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
- प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
- प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
- प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
- प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
- प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?